कुछ इस कदर.

समेट़ लू इन लम्हो को..
कुछ इस कदर दिल में..
ना जिने की चाह़ रहे.. न मरने का डऱ..
कुछ इस कदर .. जी लू मै ये जिंदगी कुछ इस कदर ..

भुल जाऊ गम.. मिले जो अपनों से..
और कुछ धोखे.. मेरे ही सपनों से..
खुद की रूंह से आज मिला सकू नजऱ..
कुछ इस कदर .. जी लू मै ये जिंदगी कुछ इस कदर ..

राह जो है चुनी.. उनसे ही उम्मिदे है बनी.
बेबस ना हो जांऊ.. ये बंदूक मन पे जो तनी..
हिम्मत दे ए खुदा.. कभी ना झुके ये सर..
कुछ इस कदर .. जी लू मै ये जिंदगी कुछ इस कदर ..

हौसलों को दे बुलंदी अचल चट्टानो सी...
रौनक दे कुछ.. शितल उस पानी सी..
समंदर ना बना.. बस बना दे छोंटी लहर
कुछ इस कदर .. जी लू मै ये जिंदगी कुछ इस कदर ..
कुछ इस कदर .. जी लू मै ये जिंदगी कुछ इस कदर ..
---विक्रम वाडकर (१३-मार्च-२०१३)

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