शेर अर्ज़ किया है.....
मैं काफिरों की तरह भटकता हूँ ;
हर जगह कितनी बार ये सर पटकता हूँ ;
गनीमत ये है की रास्ता हर वक्त सामने होता है ,
बस इन खयालो की दुनिया में फ़िर एक बार अटकता हूँ ....||
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ऐ इश्क-ऐ-नादान तू कितना खूबसूरत है,
हर घडी से जीक्र करता आशिकाना महूरत है;
दिन रात हम उन्हीको याद किया करते है,
फिर कहाँ वो चाँद और कहाँ मेरे यार की सूरत है..!!!!
समंदर है इन आखो मे.. मगर रो नही सकता..
मोहोब्बत से मिली यादो को कभी खो नही सकता..
आज भी तेरी आखो का पाणी मेरे दिल मे ताजा है...
उसी दिल के जख्मो को मै आज भी धो नही सकता....-- विक्रम वाडकर
कु्छ दर्द बाकी है..
मेरे दिल के किसी कोने मे...
याद करे हर आसु..
ये सजा है मेरे रोने मे... --विक्रम वाडकर
हर जगह कितनी बार ये सर पटकता हूँ ;
गनीमत ये है की रास्ता हर वक्त सामने होता है ,
बस इन खयालो की दुनिया में फ़िर एक बार अटकता हूँ ....||
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ऐ इश्क-ऐ-नादान तू कितना खूबसूरत है,
हर घडी से जीक्र करता आशिकाना महूरत है;
दिन रात हम उन्हीको याद किया करते है,
फिर कहाँ वो चाँद और कहाँ मेरे यार की सूरत है..!!!!
समंदर है इन आखो मे.. मगर रो नही सकता..
मोहोब्बत से मिली यादो को कभी खो नही सकता..
आज भी तेरी आखो का पाणी मेरे दिल मे ताजा है...
उसी दिल के जख्मो को मै आज भी धो नही सकता....-- विक्रम वाडकर
कु्छ दर्द बाकी है..
मेरे दिल के किसी कोने मे...
याद करे हर आसु..
ये सजा है मेरे रोने मे... --विक्रम वाडकर
आपको छीनने की गुस्ताकिया हम बार बार करेंगे..
अपने हाथों से जहर भी देदो... हम हजार बार मरेंगे....--विक्रम वाडकर
.बेवफाई का नाम मत देना इस जुदाई को..हम बेवफा नही...
पुरी जिंदगी जी लेंगे तेरी यादो मे... बस कह दो,आप हमसे खफा नही..--विक्रम वाडकर
हम भी वही ख्वाब देखा करते थे..तुम्हारी आखो से..
हम भी जिंदगी कि आगोश मे रहा करते थे... तुम्हारी सासों से...--विक्रम वाडकर
खामोशी की जुबानी, हम लब्जो मे बयान करना चाहते है...
खामोश रहकर भी खुद हम..बहोत कु्छ इजहार करना चाहते है...--विक्रम वाडकर
बात तो आप मे भी है, वरना हम कहा ये सोच पाते,
आप हि के लिखे लब्जो से कुछ यादे खरोच पाते...--विक्रम वाडकर...
बोझ उस बात का होता है, जिसका अल्म ना हो..
तनहाई तो तब होगी, जब ईस दिल पे जुल्म ना हो..--विक्रम वाडकर
वो नजर ही क्या काम की जिसमे शिद्दत ही ना दिखे...
वो इमान क्या काम का जिसमे खुद्दत हि ना दिखे...--विक्रम वाडकर.
क्या रखा था उस वफाई मे...जहा हम अकेले थे...
हम तो जीना ही भुल गये थे... जब हम अकेले थे...--विक्रम वाडकर.
खुन का पानी पिलाकर, शेर सा जिसको पाला था...
वो बाजिंदा 'शिवा'का, नजरो मे उसके ज्वाला था...
कापे शत्रु नाम से, ऐसा विष का प्याला था...
किसानो के दुख को काटे, वह शंभू दिलवाला था..--विक्रम वाडकर.
न जाने क्यो मेरे दिल मे फिर कोई आ गया...
पता नही ये प्यार है या चाहत का समा छा गया...
परेशान कर दिया है उसके चेहरे ने...
भुलाते वक्त भी उसी का दिदार दिल मे आ गया -- विक्रम वाडकर
चेहरे तो हजारो देखते है रोज हम ,
पर पागल कर देता है तेरा दिदार ,
शायद लोगो को लगता है ये मेरा पागलपन,
पर तुम तो समझ जाओ .. के यहि है मेरा सच्चा प्यार -- विक्रम वाडकर
-- विक्रम वाडकर
बोझ उस बात का होता है, जिसका अल्म ना हो..
तनहाई तो तब होगी, जब ईस दिल पे जुल्म ना हो..--विक्रम वाडकर
वो नजर ही क्या काम की जिसमे शिद्दत ही ना दिखे...
वो इमान क्या काम का जिसमे खुद्दत हि ना दिखे...--विक्रम वाडकर.
क्या रखा था उस वफाई मे...जहा हम अकेले थे...
हम तो जीना ही भुल गये थे... जब हम अकेले थे...--विक्रम वाडकर.खुन का पानी पिलाकर, शेर सा जिसको पाला था...
वो बाजिंदा 'शिवा'का, नजरो मे उसके ज्वाला था...
कापे शत्रु नाम से, ऐसा विष का प्याला था...
किसानो के दुख को काटे, वह शंभू दिलवाला था..--विक्रम वाडकर.
न जाने क्यो मेरे दिल मे फिर कोई आ गया...
पता नही ये प्यार है या चाहत का समा छा गया...
परेशान कर दिया है उसके चेहरे ने...
भुलाते वक्त भी उसी का दिदार दिल मे आ गया -- विक्रम वाडकर
चेहरे तो हजारो देखते है रोज हम ,
पर पागल कर देता है तेरा दिदार ,
शायद लोगो को लगता है ये मेरा पागलपन,
पर पागल कर देता है तेरा दिदार ,
शायद लोगो को लगता है ये मेरा पागलपन,
पर तुम तो समझ जाओ .. के यहि है मेरा सच्चा प्यार -- विक्रम वाडकर
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