सज़ा

सोचता हूं, दिल के कोने कोने मे तुझे समाँ लूं,.
फिर सोंचू, तुझे क्यू दिल मे कैद रहने की सजा दूं..
तुझे तो जमीन पर रहने की भी जरूरत नही.,
तेरे ख्वाबो की उडान को खास कोई महुरत नही..
कामयाबी कदमो मे होने के लिए ही तुझे दुवा दू..
तुझे क्यू दिल मे कैद रहने की सजा दूं..
तु इबादद करे किसी चींज़ की, वो मिलाने की ताकत तुम्हे मिले..
गर ना भी मिले हुकुमत, बस सबऱ करने की हिम्मत तुम्हे मिले..
तेरी खुशियो मे मेरे खुशियों को सज़ा लू..
तुझे क्यू दिल मे कैद रहने की सजा दूं...
-- विक्रम वाडकर

Comments

Popular posts from this blog

सुविचार संग्रह ३

चारोळ्या...

सुविचार संग्रह १