आज उडने को जीं चाहता है...
पुराने लम्हो को समेट कर...
आगे बढने को जी चाहता है... आज उडने को जीं चाहता है...
कुछ खुशिया दि इस जिंदगी ने... और कभी गम भी...
कभी दुनिया कि हसीं बने हम... और मरहम भी...
ज्यादा है दुखो की सिढीयां... फिर भी चढने को जी चाहता है...
आज उडने को जीं चाहता है...
कु्छ लोग अच्छा समझने लगे.. पर कोई बुरा भी...
किसीका सपना पुरा कर सके हम... किसीका अधुरा भी...
मुकाबला है हमारा खुद से ही... फिर भी लडने को जी चाहता है....
आज उडने को जीं चाहता है...
कुछ दोस्त साथ है हमारे... और कुछ दुर भी...
किसीके दुश्मन होंगे हम.... किसीका गुरुर भी...
दिल की जुबानं आखे है... उनको पढने का जी चाहता है..
आज उडने को जीं चाहता है...
--विक्रम वाडकर (२५-११-२०१३)
Comments
Post a Comment