रुबरू... बस तू...
कितना प्यार.. है तुमसे हमे...
चैन ओ करार.. हो जबसे मिले....
जितना देखू तूझे..बार बार...
उतना प्यार..करू...
है जुनून.. बस तू.. रुबरू... बस तू...
पलको पे ना आए.. कभी समंदर..
मिल जाए हसी.. गम मेरे भुलाकर..
खो ना जाए.. ये लम्हे हमसे..
सासो की लौ जले मद्धम से...
मिलने की चाहते.. करे बेकरार..
कैसे इजहार.. करू..
है जुनून.. बस तू.. रुबरू... बस तू...
कितने मुश्कील है ये चेहरे...
जिनमे राज.. छूपे है गहरे..
बन गया तु मेरा सरमाया...
मेरी दुनिया मे जबसे है आया..
जितने बचे है.. दिन ये चार..
तुझसे दीदार.. करू..
है जुनून.. बस तू.. रुबरू... बस तू...
--विक्रम वाडकर २९-मे-२०१४
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