वास्ता..
वास्ता... है हौसलो से..
है धुंदला साहिल..
खोई है मंजिल..
बे-निशान है रास्ता..
वास्ता... है हौसलो से.. हमे वास्ता....
शामो ने है ढक दिया...
सुरज का जलजला...
रातो के अंधेरो से अब..
यांदो का सिलसिला...
रोशणी की गुहाऱ करे.. दिल की ये दास्तां...
वास्ता... है हौसलो से.. हमे वास्ता....
कुछ़ पानी सा.. चंचल..
कुछ़ चट्टान सा.. अचल..
हवा से भी हलका..
पर साथी जो दिल का..
वो हौसला जो दिल मे है बसता..
वास्ता... है हौसलो से.. हमे वास्ता....
-विक्रम वाडकर (२०-मे-२०१४)
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