नासमझ ये दिल..

..नासमझ ये दिल..
नैनो की जरूरत हो तुम.. तसवीर हो तुम.. ख्वाबो की..
नासमझ दिल .. ना समझे कब तक.. देखे राह जवाबो की..
नासमझ ये दिल..

गमो का है काफिला.. मिला.. अंधेरा हर जगह...
राते थी जगी जगी.. जिनकी. तुही तो थी वजह...
शाम मेरे जिंदगी की.. कुछ पुराने हिसाबो की...
नासमझ दिल .. ना समझे कब तक.. देखे राह जवाबो की..
नासमझ ये दिल..

हसरते कुछ बाकी है दिल मे.. बेवजह करती परेशान...
तेरे होठो की हसी यादो से.. लेती बार बार मेरी जान...
तेरे बिना फकीर बना दिल.. फिर भी आदत नवाबो की...
नासमझ दिल .. ना समझे कब तक.. देखे राह जवाबो की..
नासमझ ये दिल..

तू नही है मेरी किस्मत.. क्यूँ फिर उम्मिदो की शमा...
जलती लौ, तडपे जब तक.. मेरी भी लौ तडपे यहाँ..
क्युँ दिए है दर्द इतने.. अब क्या राह सबाबो की...
नासमझ दिल .. ना समझे कब तक.. देखे राह जवाबो की..
नासमझ ये दिल..

-विक्रम वाडकर  (१२-मे-२०१४)

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